३० दिसंबर, १९७२

 

   हां, तो नया वर्ष आ रहा है.

 

     क्या आप नये वर्षके लिये कुछ अनुभव करती है?

 

 ( मौनके बाद) वस्तुओंने एक उग्र रूप ले लिया है । ऐसा लगता है मानों सारा वातावरण ऊपरकी ओर, वैभवकी ओर उठ रहा हो... उसके बारेमें सोचा भी नहीं जा सकता और साथ ही यह भाव भी है कि किसी भी दमण. मृत्यु हो जाय -- ''मृत्यु'' नहीं, शरीर विघटित हों सकता है । दोनों एक साथ मिलकर एक चेतना बनाते है (माताजी सिर हिलाती है) . सभी पुरानी चीजें, कमजोर बचकानी, अचेतन मालूम होती हैं -- और अंदर.. वह दुर्जेय और अद्भुत है ।

 

  तो शरीरकी, देहकी एक ही प्रार्थना है -- और हमेशा वही एक :

 

मुझे इस योग्य बनाओ कि मै तुम्हें जान सकूं ।

मुझे अपनी सेवाके योग्य बनाओ ।

मुझे 'तुम' बननेके योग्य बनाओ ।

 

तो बस, यही है ।

 

  मै अपने अंदर एक बढ्ती हुई शक्तिका अनुभव करती हूं.. लेकिन वह नयी तरहकी है... मौन और मननमें ।

 

   कुछ भी असंभव नहीं है (माताजी दोनों हाथ ऊपरकी ओर खोलती है) ।

 

(मौन)

 

 तो अगर तुम्हारे पास कोई प्रश्न नहीं है... । अगर तुम मौन चाहते हो... सचेतन नीरवता...?

 

     लेकिन पता नहीं कि मै ठीक गति कर रहा हू या नहीं?

 

 (कुछ देर मौनके बाद) लेकिन जब तुम भगवानके साथ संबंध जोड़ना चाहते हों तो कौन-सी गति करते हो?

 

  मै अपने-आपको आपके चरणोंमें रख देता हूं ।

 

 (माताजी मुस्कराती है और ध्यानमें चली जाती हैं)